"लोग क्या कहेंगे"(रिश्ता प्यार से विवाह तक)

महसूस किया हर लम्हा है,
हर किसी ने इस खूबसूरत पल का
आसानी से जो प्यार हो जाता है,
उतना ही मुश्किल है विवाह संबंध तक जाना।

हम उस समाज में रहते हैं
जो सारे दायित्वों को उठाती है
लोक -लाज, सम्मान -प्रतिष्ठा,
सब केवल यही वर्ग निभाती है।

जात-पात, उँचा -नीचा, धन-दौलत
संस्कारों को नकार के प्यार हो जाता है,
वक्त ब्याह की आते ही ,
ये सब व्यवहार में आता है ।

हम मध्यम वर्ग में जीते हैं
यहाँ जज़बातो से बड़े संस्कार है,
"लोग क्या कहेगे" इसके चक्कर में,
सारा जीवन पड़ा बेकार हैं।

बड़े सिद्दत से चाहना
उसे दिल में बसाना
बस छुप-छुपाके प्यार निभाना
एकपल मे ही सबको भूलकर


नए रिश्तो संग ब्याह रचाना
ये बदलते जमाने का चलन है
इसे बदलना भी एक अधिकार है।

टूट रहे कई रिश्ते है 
कितनो की कहानी अधूरी हैं, 
इस अधूरेपन के कारण, 
पवित्र ब्याह का संबंध भी ना पूरा है।

ब्याह का मतलब सिंदुर,बिन्दी,सुहाग नही
दिल में छुपा जज़बात होता है,
जब तक प्यार का रिश्ता सिंदूर तक ना पहुचे
तब तक रिश्ता अधूरा और अइय्यास होता है ।

बदलते जमाने में कुछ बदलाव जरूरी है 
निभा सको ना जिस संबंध को, 
उसे ना बनानी ही जरूरी है, 
बन जाए स्वच्छंद विचारपूर्ण रिश्ते तो, 
"लोग क्या कहेगे " इसे नकारनी जरूरी है, 
बदल रहा है जमाना थोड़ी विचारो की-
बदलाव जरूरी है ।

                            प्रीति कुमारी 











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