ये जन्म दायिनी माँ मेरी,
एक बाल रूप की क्षवि हुई
सूझ बूझ से पड़े हुई,
दुनिया की समझ ना तनिक थी मुझमे
तबसे तुम्ही ने संभाला है मुझे ।
जितना भी कर दू तेरे लिए
तेरे प्यार का मोल ना चुका पाउंगी
हर शख़्स का इस जहां में,
माता-पिता से ही जुड़ा हैं सारा जीवन।
हर तकलीफ को अनसुना कर
पिता पूरा करता है बच्चों की हर ख़्वाहिश को ,
माँ के बिना है हर घर सुना,
बच्चे की किलकारी की खातिर
हर माँ अपना एश्वर्य गवा देती है,
खुश रहे मेरा लाल ये सोच के
अपने हर जख्म छुपा लेती हैं ।
दुभाग्य हैं इस दुनिया का
माँ आज भी तन्हा रोती है,
जीवन भर की कमाई बच्चों पे लुटाने वाला
वो पिता आज भी तन्हा सोता है।
बच्चों की ख़्वाहिश पूरी करते करते
ना जमा की है धन बुढापे के लिए,
दुभाग्य समाज का ऐसा है कि,
कुछ लायक बनाने वाले माता -पिता
किसी लायक ना रहे इन नालायक बच्चों के।
कई बच्चों को पालने वाला माता-पिता को
कोई एक बच्चा ना पाल सका बुढ़ापे में
भेज दिया वृद्धा आश्रम ,
जब जरूरत था उन्हें अपनेपन का।
मानवता मर रही है प्रति क्षण
ना तो वृद्घा आश्रम की जरुरत ही क्या है,
चलना सिखाया है जिस शख़्स ने,
उसकी ही लाठी बनने में हरज क्या है ।
हर किसी का ये दिन आयेगा
ना गुरूर करो इस जवानी पे,
ये खुबसुरत रूप का छलिया है
जाएगा एक दिन छलकरके।
सम्मान करो माता-पिता की
ख़त्म करो इस वृद्धा आश्रम को,
आशीर्वाद पाओ जीवन भर उनसे
दो प्यार अतिशय उन्हें बुढ़ापे में
जितना पाया है तुमने उनसे बचपन में ।
ये ही सेवा तेरी पूजा है
यही है तेरा चारो धाम,
पास रखो, प्यार दो हर धड़ी
माता -पिता को, इनके चरणों में ही है अनेको धाम
जो रहेगे ये खुश तुमसे, तो पाओगे हर क्षण,
सुख -शांति , एैसो आराम । ❤❤🙏
प्रीति कुमारी
2 टिप्पणियाँ
Must 👌👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा है।🙏👍
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