अनकही दास्ता

अनकही दास्ता 
ये दिलो का जज़बात है 
तेरी मासुमियत, तेरी सादगी
तेरी खूबसूरती का आगाज है ।

खोया हुआ हूँ तेरी कसीस में 
डूबा हुआ हूँ निगाहो में 
तेरे ख्वाब के तहसील में 
तेरे मुकम्मल इश्क में ।



कह सका जो ना तुझे
वो राज़ दिल में दबा है 
है मेरी कहानी अनकही
जो तेरे आँखो में डूबी है ।

एक सादगी लिवास में 
चेहरे पर लट गिरा
ढ़ाह रही थी कयामत तू
वो हसीन पल याद है ।

डूबा हूआ तेरे इश्क में 
ये दिल तुझे कहने को बेताब है 
हो मेरी तू अपसरा 
तेरी सादगी इतनी बेमिसाल है ।

अनकही मेरी दास्ता
मेरे आंखों में बसा एक ख्वाब है 
कैसे बताउ तुझसे
तू खूबसूरती की कैसी जाल है 
तु  है मेरे आँखो में,मेरे रोम -रोम में 
 पर मेरी अनकही दास्ता।

                            -प्रीति कुमारी 


 

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