अकेलापन

भरी भीड़ में भी तन्हा
खोया, खुद में सिमटा
कुछ सोच  रहा शायद 
खुद को खुद ही में ढूंढ रहा शायद ।

बहुत मुश्किल है यारो 
किसी के बगैर जीना 
अकेला, तन्हा, गुम होकर जीना
हर पल अपनो की खलती है ।


केयर, प्यार, अपनापन
सब छूटता जाता है
मंजिल की राह तो चढ़ता जा रहा 
पर अकेलापन हर पल खलती है ।

उम्र बढ़ती जा रही है 
साथ अपनो के बिना
हर काम, हर शौक पूरी तो हो रही
पर जीवन है तन्हा अपनो के बिना।

कोई पास हो मेरे
हर बात सुने मेरी 
खूब बोलने को मन करता है 
थक गई हूँ अकेली, तन्हा
भीड़ में रहने को मन करता है ।

बहुत मुश्किल है अकेले रहना
बाहर की शोर देखकर
दिल जोर -जोर से शोर करता है 
बहुत सारी खुशियां और गम बाटनी है 
कोई सुनता नहीं,किसी को समय नहीं 
ये अकेलापन बहुत खलती है ।

                          -प्रीति कुमारी 

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