सफर रूक सा गया है

आज फिर मुँह की खाया हूँ
जहाँ से शुरू किया था सफर
वही वापस लौट के आया हूँ
आज फिर मुँह की खाया हूँ ।

सफर रूक सा गया है 
उम्मीदे हजार पिरोया था
क्या बताउ दर्द अपना 
अपनी कमियों मे ही खोया हूँ ।


बेजुबा सा बैठा हूँ, 
कुछ पल पहले की बात सोच कर
क्या -क्या सपना बोया था
पल भर में सब टूट गया।

इस भागम -भाग की दुनिया में 
अकेला बैठा मैं गुम सा हूँ 
किसे बताउ किसे सुनाउ
गम से कितना मजबूर सा हूँ ।

वक्त बहुत नाजुक है ये
आसान नहीं कुछ पाना है 
फिर भी आस लगी है मन में 
मुझे ये जंग जीत जाना है ।

कितना भी गिरू, फिर उठना है
एक बार हौसला फिर लाना हैं 
अपनी कामयाबी को पाने को
खुद ही हिम्मत जुटाना है 
एक और प्रयास कठिन करके
जीवन को उँचाई तक पहुँचाना है।

                             -प्रीति कुमारी 


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