पर निःशब्द नहीं
आवाज है मुझमे भी
पर बोलती नहीं ।
जज़्बात भरपूर भरे हैं अंतरमन में
पर मुँह खोलती नहीं
चाहत हैं बेहद जीवन के
पर किसी से उम्मीद नहीं ।
पहल न करूं
किसी से ना डरूं
जीत की चाह नहीं है
और हार मानती नहीं ।
आईना हूँ
बिखरती नहीं
दर्द से भरी हूँ
पर जीना छोड़ती नहीं ।
प्रीति कुमारी
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