आज की मुहब्बत

मन गया, तन गया
मेरा आबरू, जीवन गया
प्यार था किसी और से
हूँ ब्याहता किसी और की।

उल्लास है, हुंकार है
ये आज की ललकार है
हर रास्ता है गुल से खिला
मंजिल ही बस गुमराह है


प्यार की जब तपिश लगी
ना जात दिखी, ना धर्म दिखी
रूक गया रास्ता ब्याह पर
सारी जाति ,धर्म,कुल मान -सम्मान
सारी कायनात की रूकावटे लगी।

दिल किसी के पास है
और मैं किसी की हो चली
है यही अगर न्याय तो,
मैं न्याय करके चल परी।

जात धर्म का मान रख
अपनो में खुशियां बांट कर
अपनी खुशी को त्याग कर
मैं ब्याह अपने जात चली।

सब नातो रिस्तो की खुशी के लिए
देख तेरा पद, धन और रूतवा 
कर जिंदगी तेरे नाम चली
हो ब्याहता किसी और की 
और दिल में कोई और हैं ।

                         प्रीति कुमारी 

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