एक दिन खामोश हो जाएगे

आजमायेगे हम भी तुम्हें एक दिन
तुम जिस तरह पल भर के बाद
रूठने का बहाना करके भूला देते हो
एक दिन हम भी खामोश हो जाएगे।

तुम्हें दर्द से भी उस वक्त मुहब्बत होगी
मेरी मुहब्बत आज खलती हैं
उस वक्त मेरी बेरूखी से भी
तुम्हें मुहब्बत होगी।

वो दौड़ भी आएगा एक दिन
तुम होगे सामने खड़े पर
मेरे जह्नो में ना कोई
तुझे देखकर आहट होगी।

जज़बातो की लहर तब तक ही चलती है
दिल जब मुहब्बत को ही खुदा मानता है
उतर जाए जो दिल के आसिया से
फिर वो कही भी जाए खाक फर्क नहीं पड़ता है ।

प्रीति कुमारी

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ