एक जिंदगी तुम्हारी थी
कुछ सपने हमारे थे
कुछ हकीकत तुम्हारी थी।
हम दिल्लगी जिसे समझते रहे
वो तेरे समय गुजारने का तरीका था
जहा हम जीने मरने को तैयार थे
वहा तुम रिश्ते तोड़ने को तैयार थे।
निभाना तो था ही नहीं तुम्हें
तुम तो बस वक्त काट रहे थे
जजबात बांट रहे थे
और इस सच से बेखबर हम
अपनी हर पल तेरे एहसासों में गुजार रहे थे ।
दिल्लगी दिल्लगी में
एक सच सामने आ ही गया
तुम वेवफा निकले जान कर
मेरी सच्ची मुहब्बत भी सरमा गया।
भला हो तेरे धोखे का
जिसने बर्बादियों से बचा लिया
वरना हाल बूरा हो जाता जीवन का
इस झूठी मुहब्बत के अफसानो से ।
प्रीति कुमारी
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