काश ! कुछ काश ! ना होता

ये खुदा मुझे उसे भूलने में
थोड़ी सी मदद कर दे
भेज कोई हवा का ऐसा झोखा
और मुझे उसमे दफन कर दे।


सही नहीं जाती बेरूखी इतनी
दर्द का शैलाब सा उमरता हैं
वो शख्स ऐसा मतलबी है
ना छोड़ता हैं ना रहता है ।

भूलने की कोशिश करू भी तो कैसे
भूलने की वजह ही नहीं देता
याद दिलाता है अपने होने का रूक रूक कर
ना छोड़ता हैं ना रहता है ।

गमों की दरिया में डूबा हुआ हूँ
ना जी रहा हूँ ना मर रहा हूँ
उसकी बेवफ़ाई से हरदम
घूँट रहा हूँ, बिखर रहा हूँ ।

निभाए कोई तो आए जिंदगी में
लोग तन्हा करने क्यों आते हैं
जब दिखानी होती हैं चालाकिया ही मुहब्बत में
तो शतरंज की बाजी क्यो नहीं लगाते हैं
वेवफाओ का नाम भी होता और कोई दिल
परेशान, तन्हा और टूटा हुआ भी ना होता।

प्रीति कुमारी

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