स्वाभिमान ऊँची होनी चाहिए

पद उँची हो ना हो
व्यवहार ऊँची होनी चाहिए
धन वैभव कम हो मगर
संस्कार ऊँची होनी चाहिए ।


गिला शिकवा क्या करना
किसी गिरे हुए इंसान से
उसको नीचा क्या दिखाना
जिसका खुद ही ना स्वाभिमान हो।

कुछ मिले कुछ खोजाए
रीत जीवन की यही
भाग्य में जो लिखा है
भोगना है यही सभी।

गिर जाए जो चरित्र से
उसे फिर क्या समझ आऐगा
जिंदगी में अदब और संस्कार की
व्यवहार और परमार्थ की ।

बिना मान के जी रहे
उस पशु समान मनुष्य से
क्या करना कोई शिकवा
जिसकी जिंदगी खुद ही बोझ हैं
जिसका खुद ही ना कोई स्वाभिमान है ।

      प्रीति कुमारी

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