बेफिक्र आजाद रहने वाली

क्या परंपरा हैं
क्या क्या कर जाती हैं
अचानक से एक लड़की
जब बहु बन जाती हैं
सारी जिम्मेदारी को फिर
बखूबी निभाती हैं ।


शाटर्स में भी गर्मी -गर्मी करने वाली
पूरे दिन साड़ी का आँचल सर पर रखती है
अपना खाना तक खुद ना खाने वाली
सारे परिवार का ख़्याल फिर रखती है ।

हर किसी के जरूरत का ख़्याल
खुद की जरूरत से पहले रखती है
बीमार रहे या थकी हुई
कहा किसी को कह पाती है 
ना ही कोई समझ पाता है ।

कहते हो क्या बदल गया
मायका का आंगन छुटा
संगी साथी छूटे
जंजीर की बेरी जकड़ गई
एक और नई मर्यादा जुड़कर।

बेफ्रिक आजाद रहने वाली
गम कोई नहीं सहने वाली 
सारे तकलीफ उठाती हैं 
चुप रह कर सब सह जाती हैं ।

मौन की बेड़ी टूटी तो
 कोसी और दबाई जाती हैं 
इससे भी समाज दबा ना सके तो 
जिंदा जलाई जाती हैं ।

  प्रीति कुमारी 



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