हम खुद दबे रहेगे खंजर से
तुम दैत्य दानव सा उड़ेलना गर्मी
हम फैले रहेगे समंदर से ।
तुम बारूद सी कस्मे खां लेना
हम यकीन दुगनी कर लेगे
तुम सौ वादो कि ढेरी पर
हम सब पर चढ कर उड़ लेगे।
कोई सत्य अस्तय का मान नहीं
कोई उंच नीच का भेद नही
ना पाने कि ना खोने कि
सहर्ष मुहब्बत कर लेगे ।
तुम पुल किनारे मिलना मुझे
दो पल साथ में चल लेगे
फिर रहे साथ या गुमनामी हो
उस मंजर से भी गुजर लेगे
तुम बेफिक्र रहो इस मंजर से
हम खुद ही दबे रहेगे खंजर से ।
प्रीति कुमारी
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