कुछ ख्वाहिशें पूरी नहीं होती

रात तो ख़त्म हो गई
पर सुबह ना हुआ अभी तक
वो हमारे तो बन गए
पर सिर्फ़ हमारे ना बन सके अभी तक।

तेरे नखरे, तेरा बेवजह रूठना
तेरे तेवर, सब सह लू
तू सौ बार रूठे, सौ बार झुक कर मना लू
सब हमे मंजूर है, दिल से हमे कुबूल है।


पर तेरी चाहत में कोई और भी हो
तो फिर मुझे तू नहीं कुबूल है
तुझे फिर तेरी आवारगी मुबारक
मुझे मेरी तन्हाई में ही फिर सुकून हैं।

चाहते हैं तो छुपाते नहीं है
बेवजह ना आते हैं
ना ही छोड़ जाते हैं
करते हैं इश्क़ तो हम निभाते बहुत हैं।

खुद को सता कर बहुत कर ली मोहब्बत
अब खुद को बहुत समझाना है
जो करते हैं इश्क़ नहीं हमसे
उनको उन्हीं के हाल पर छोड़ जाना है।

कुछ ख्वाहिशें पूरी नही होती
लिखी हो अधूरी मोहब्बत तो
लाख कोशिश से भी पूरी नही होती
दिल में होते हम उनके तो समझा भी पाते पर
उनका मसला तो सिर्फ़ हमारा दिल रखने का हैं
फिर कहा वो सिर्फ़ हमारे हो पाते।

प्रीति कुमारी



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