बेहद उपालंभ है तेरे इश्क़ से

तेरे साथ से पहले
इश्क़ खूबसूरत लगती थी
अब बड़ी उपालंभ हैं इश्क़ से
सजाए खुशी कम ,गम बेपनाह है।

ख्यालों की दुनिया की मोहब्बत में
कल्पनाओं सी मोहब्बत की चाह थी
कोई चाहे हमे बेइमतहा यहां
जिसकी ना हो कोई भी हद सदा।


तेरे साथ ने अक्सर
कुछ कमी का एहसास दिलाया है
हमने जितना टूट कर चाहा हैं तुम्हे
बदले में बेहद कम ही पाया है।

साथ होकर भी कुछ कमी सी है
तेरे वादों में नमी सी है
तेरे प्यार से वो वाइव्स नही आती
तेरे चाहत में मुझसी फरमाइश नहीं आती।

ना ख्याल पूछना, ना वक्त देना
ना मिलने कि बेचैनी, ना बिछड़ने का गम
बात करने को वक्त मांगने परते है
मैं याद ना करू तो याद नहीं करते
"ना हो वक्त ख़ाली"तो हमपे बरबाद नहीं करते।

साथ होकर भी अकेला सा लगता है
तू अपना होकर भी पराया सा लगता है
हक जाताना तो दूर, "हक की भी ना बोल सकू"
अपनापन इतना कम लगे हैं तुमसे की
दिल तो क्या..…….....😔
दिल की बातों को भी ना खोल सकू।

प्रीति कुमारी




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