एक अनोखा मंजर ऐसा भी आता है
शिद्धत वाला मोहब्बत भी
अक्सर बेरोजगारी में ही हो जाता है।
मिलना तो फिर होता नहीं
दर्द की दहलीज पर फिर खड़े हो जाते हैं
दर्द के दरिया में डूब कर
एक और साल बेरोजगारी में बिताते हैं।
जब ख्याल अपने आलम का होता है
खुद को खुद से रूबरू करवाने में
कई लम्हा गुजर जाता है
अक्सर शिद्दत वाला प्यार
बेरोजगारी में ही हो जाता है।
पलटते तो है क़िस्मत का ढर्रा
पर कई चैप्टर क्लॉज हो जाता है
इमोशन की , भरोसे की
सब का सफेद चादर उतर जाता है।
ऐसी मोहब्बत को जिंदगी में लाए ही क्यू
जो फासला लाए और फ़ैसला करे
रोज़गार, और बेरोजगार को चुन।
रह जाए कुछ साल और बेरोजगार
ऐसी नौबत लाए ही क्यूं
इसलिए हम चाहते ही नहीं कि
बेरोजगारी में" शिद्दत वाली मोहब्बत हो जाए"।
प्रीति कुमारी
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