आस वही रुकी हैं
सब सच से वाकिफ हैं ये दिल
फिर भी तलब उसकी ही लगी हैं।
दिल की तकलीफों से परे
ये दिल खयालों में डूबा हैं
कोई इतना भी बेवफा हो सकता है
हाय रि कलयुग तू कितना अजूबा हैं।
जिस्मों का व्यापार करता हैं या
दिलों की सौदेबाजी.......
वो शख्स इतना गिरा हैं
जितनी बढ़ रहीं हैं आबादी।
आइयास परिंदा हैं वो
कभी लौटकर घोंसले में अब ना आएगा
दिलों की सौदाबाजी करते करते
अपने रूह की हस्ती मिटाएगा।
कभी ख्यालों में
तो कभी हकीकत में
जान बूझ कर केवल झूठ बोलता हैं
वो दिलो से खेलते_ खेलते
इतना बेवफ़ा हो गया है कि
बड़ी सफाई से झूठ को सच
सच को झूठ बोलता है।
निगाहों से देखा हैं हमने
उसके तमासे इश्क़ के
बेशर्मी भरी वो अदाए
वो उसके झूठे वादे इश्क़ के।
प्रीति कुमारी
1 टिप्पणियाँ
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