बुढ़ापे को अपने साथ से निखारना

माना समंदर नहीं नाप सकते
दिल की गहराई तो मापो
अपने आधुनिक सभ्यता को मत मारो
पर अपनी संस्कृति को तो बचा लो।


मॉदर्स डे मना लो बेसक
पर मां को उनके घर से तो ना निकालो
माना वो बूढ़ी हैं,
पर उन्हे बोझ समझ कर तो ना पालो।

पिता के कांधो पर घूमा हैं जो तुमने मेला
बुढ़ापे की लाठ्ठी बनने में हिचक मन में ना डालो
जिस परिवार के नाम पर मां_बाप को
वृद्धा आश्रम में डाला है तुमने
तुम्हारे बचपन में उनका भी ऐसा ही परिवार था
फिर भी उन्होंने तुम्हे अनाथ आश्रम में नहीं डाला
उनके इस त्याग को तुम यू ना उछालों।

जवानी की जोश में उछलो ना तुम ऐसे
जो हाल उनका हैं वहीं तुम्हारा भी एक दिन आएगा
संस्कार जो सीखा रहे हों बच्चो को
यकीन मानो आपका बच्चा भी
कल आप पे वही दुहराएगा।

बच्चो की किलकारी
बुढ़ापे की झिरक बराबर ही होती हैं
कदम कदम बढ़ना, दो कदम चल कर गिरना
फर्क जरा सी भी कहा होती है।

बिन बोले शब्द को समझा हैं जिसने
तोतली आवाज़ को भी हस कर कबूला हैं जिसने
उनके टूटे उम्मीद का सहारा तुम बनना
मां_बाप का बुढ़ापा
तुम्हारे जीवन का अंतिम साथ हैं उनका
उससे हर पल यादों में गुजारना,
उनके जीवन भर के त्याग को
अपने प्यार और साथ देकर
उनके अंतिम पल को तुम निखारना।

प्रीति कुमारी


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