जरा सा रूठना भी

हम तो बेवजह ही रूठे थे
उसने तो खयालों की दुनिया ही मिटा दी
हमे मना लेगा प्यार देगा में उलझे थे
उसने तो दूसरी दुनिया ही बना ली।


उलझनों में उलझते चले जाइयेगा
इश्क़ ना कीजिए साहब
वरना यकीन मानिए.....
खुद को ही खोते  चले जाइयेगा।

कितना मिलेगा, कितना बिछड़ेगा
ये तो वक्त ही बताएगा
अपना_ अपना तो हर वक्त कहता है वो शख्स
पर कब तक अपना रह पाएगा ये वक्त ही बताएगा।

जरा सा रूठना भी
संबंध बिगाड़ सकता है
यकीन मानो ऐसा रिश्ता आपको
कभी भी नही निखार सकता है।

कुछ पल की दूरी तरपा दे
बिछड़ने का गम पूरे दिल दिमाग़ को हिला दे
ऐसी मोहब्बत ही मुकम्मल होती है
जब तक ना हो खोने का गम
तब तक रिस्तो की कदर ही कहा होती हैं।

प्रीति कुमारी

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