ये दिल फिर तुम्ही पर

रफ्तार धीमी ही सही
दिल में मुझे ही उतारना
मेरे कुछ अनकहे ख़्वाब हैं
जिसे हमे हैं मिलकर सवारना।


बदल जाए तुम्हारे जज़्बात
इस कदर ना चाहना
उम्र गुजर जाए संग
अपनी मोहब्बत को इस तरह निखारना।

टूट कर आए हैं
फिर से तुम्हारे ही गलियों में
हमारे हाथों को अगर अब थामना
तो आख़री मंजिल तक उतारना।

टूट कर फिर बिखरू
ऐसे हालात ना अब आए
हम तुम्हें फिर से चाहने लगे तो
फिर से किसी ...............
गैर की माजूदगी का अहसास ना आए।

दिल बिखरने के बाद
फिर से निखरना चाहता है
इश्क तुमसे ही था
ये दिल फिर तुम्ही पे मरना चाहता है।

प्रीति कुमारी

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