कुछ इस तरह मेरी यादें

झूठे शख्स से वास्ता ना रखने वाले हम
झूठी दुनिया में ही उलझते चले गए
चाहा था किस सिद्दत से उसे
उसके धोखे से टूटते चले गए।


दिखाया कभी नहीं
पर चाहते उसे ही दिन रात हैं
इश्क़ सच्चा था इतना कि
तलब उसकी ही मुझे आज हैं।

बेखौफ हुआ मंजर
दर्द सा सैलाब उबरता हैं
मेरा इश्क नहीं कमता
उसका ही चेहरा नजरों के पास रहता है।

वो किस किस का हैं
वो वही जाने या खुदा जाने
पर उसने एक बार कहा था
मैं सिर्फ तुम्हारा हूं
यही बात जहन में हजारों बार गुजरता है।

कब तक चाहेंगे,
ये तो बस मेरे जज़्बात समझता है
भूला ना दू उसे भूलते भूलते
फिर उसे मेरी कदर समझ आए
यही सोच में दिल आज भी इंतजार में मचलता है
झूठे इंसान में भी मुझे प्यार झलकता है।

प्रीति कुमारी

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