वो शख्स जिम्मेदारियां की आर में
खूबसूरती से रिश्ता तार तार कर चला गया
मैं निशब्द सुनती आखों मे आसू लिए रह गई।
उस बेवफा से क्या कहते
जिसने मुझे समझा ही नहीं
जिम्मेदारी उसकी हैं तो क्या मेरी नहीं।
कर्ज में डूबा मेरा भी पिता हैं
मेरी भी उन्हें करनी व्याह है
कर्ज चुका सकू , कुछ सुकून दिला सकू
जिमेदारियों से घिरा मेरा भी आसिया है।
फिर भी मैंने तुम्हे चाहा
हर मजबूरियों को टाल कर
एक उम्र तुम पर खर्च की है
बहुत कीमती वक्त देकर
इस रिश्ते को एक उम्र दी है।
तुम मजबूरी गिना कर
रिश्ते तोड़ने पे उतर आए
हमने अपनी हर मजबूरी को समेट कर
तुम्हें अपनी जिंदगी समझी हैं।
बेवफा बनकर भी बेवफा कहलाना नहीं चाहते
तुम इश्क़ नहीं करते तो
मजबूरी की आर में रिश्ता निभाना नहीं चाहते
चलो जो हुआ सो हुआ , दिल की ना सही
मेरे खर्च किए उम्र मुझे लौटा दो
जो दिखाए थे तुमने सपने
वो जहन से निकाल कर
फिर से मुझे जीने का सलीका सीखा दो।
प्रीति कुमारी
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