अगर तुमने मेरे कांटो भरे रात देखे होते
आज तुम भी सबके साथ वाह _वाह कर रहें होते
अगर तुमने मेरे बिगड़े हालात देखे होते।
तुम से क्या शिकायत करू
तुम तो मुझे अधूरा जानते हों
तुमने तो तरक्की देखी है
मेरे संघर्ष को कहा मानते हो।
रातों भर रोया था कभी
चुपचाप ही खुद में खोया था कभी
तानों की बरसात में भी
खुद को खुद ही संजोया था कभी।
आज की वाह वाही
कुछ नहीं उन दर्दों के सामने
जिस तकलीफ से होकर भी
गिरते उठते खुद को आसूओ में भिगोकर
अकेले ही हर मुसीबतों को डुबोया था कभी।
कभी आना पास मेरे ..........
सफ़लता को नहीं ,संघर्ष को अपने सुनाएंगे
हम आज क्या हैं? कौन हैं? ये सब जानते हैं !
संघर्ष में क्या थे कौन अपने थे उनसे मिलाए तुम्हे।
प्रीति कुमारी
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