क्या सोचकर तुम्हें पाला था हमने......

क्या सोच कर तुम्हें पाला था हमने
तू लाडला हैं घर का
इसलिए बेटी को भी प्रतारा था हमने
चिराग़ हैं मेरा मुन्ना तू यहीं जुबा पर रहती थी
दिन रात तुम्हारी मां तुम्हारी सारी ख्वाइश पूरी करती थी।


पिता नहीं वो सुख चादर थे तेरे
हर नखरे तेरी उठाई है
तुझको कोई कमी ना हो
इसलिए अपने शौक को भी मिटाई है।

आज बहुत काबिलियत हैं तुममें
तमीज ज़रा भी ना सीख सका
कितना नालायक बेटा है री तू
मां की ममता को ना देख सका।

कलंक बना पिता के त्यागो का
सब भूला दिया संस्कारों को
जिसने पाला पेट काट कर
झूला दिया उसे ही बेघर कर।

सबसे ज्यादा प्यार मिला
बहनों से ज्यादा दुलार मिला
तू सहारा हैं बुढ़ापे का
ये सोच कर तुम्हें ही पिता के सारे
जीवन की पूंजी का अधिकार मिला।

उनकी पूंजी उन्ही को देने से तू कतराता हैं
कैसा गिरा औलाद हैं तू
सहारा बनने के बजाए
उनके आंगन से ही उन्हें निकाल कर
जीते जी उन्हें मार गया।

एक आस तुम्हारी ही थी उनको
तुम ही तो एक सहारा थे
दो टूक रोटी ही तो खाते
तुझको अपना दर्द बताते
कैसे गिर जाते हो इतना
जीवन देने वाले को ही,
कैसे जीवन नरक बना पाते हो
आत्मा नहीं रोती क्या तेरी
ख्याल नहीं सताता है ...मेरे बच्चे देख रहें
बाड़ी मेरी भी आएगी
जो कर्म किया वहीं पाए तो
क्या ये सोच हृदय नहीं खबराता हैं।

क्या शर्म बेच कर खाए हो
क्यू मनुष्य भेष में आए हों
जब दया भाव ही नहीं तुममें
जब अपनेपन का मान नहीं
हाय ये कैसी कलयुग है
यहां अपने अपनो का सम्मान नहीं।😔

प्रीति कुमारी


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