हम आज भी उस जहां में हैं......

हम आज भी उस जहां में हैं
जहां मोहब्बत एक गुनाह में है
बेटो के लिए तो ठीक.....
पर बेटियों के लिए सजा में हैं।


माना पिता ने पाला हैं
सारी खुशियों से संभाला है
सारी सारी रात जग कर 
एक मां ने बेटी को संभाला है।

सारी बातें प्यार से हैं
फिर प्यार ही क्यू शर्मशार सी है
बेटियों के प्यार से ही
दाग बेदाग क्यू घर की इज्ज़त
केवल बेटियों के व्यवहार से हैं।

कब तक बलि चढ़ाओगे
इन इज्जत संस्कारो के नाम
इश्क़ कोई गुनाह नहीं
आजाद हैं बेटा करने को तो
बेटियों के लिए क्यू सजा रही।

आजाद हुआ भारत
ज़रा आजादी लड़की को भी दो
संस्कारो की जंजीर में यूं
बेवजह लड़की को ना बांधो।

पिता के किए सारे त्यागो को
कहा भूल जाती हैं बेटी
अगर हो जाए प्यार किसी से
तो ये गुनाह क्यू बना देते हो
अपने से पसंद किया तो ...
साथ आप क्यू नहीं देते हो।

सारे सपने त्याग कर पालते हो
फिर बलि प्यार के नाम पर चढ़ा देते हो
सही बोलूं तो ये खोखले रिवाजों की खातिर
मतलबी इस समाज की खातिर
संस्कारो के नाम पर......... अपनी 
बेटी की और उसके खुशियों की बलि चढ़ा देते हो।

अब तो थोडी सोच बदलनी चाहिए
पसंद आ जाए बेटी को कोई तो
आगे बढ़ कर पिता को
सही गलत में भेद बतानी चाहिए
खोखले रिवाजों से परे हटकर
बेटी के निर्णय पर साथ निभाना चाहिए
बड़े होने और प्यार करने का दायित्व
कुछ अलग सोच रख कर भी निभानी चाहिए
बदलते समाज में थोडा तो सोच में बदलाव लानी चाहिए।

प्रीति कुमारी










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