फटाको के शोर गुल से विरक्त
कोई ज़िंदगी को तराश रहा है।
कई स्टूडेंड अपनो से दूर एक बंद कमरे में
अकेलेपन में उम्मीद को तलाश रहा है।
कोई रोशनी आएगी उसके दामन में भी एक रोज़
दिवाली उसकी भी होगी तब
आज बस दूर रौशनी है घर की बालकनी में
कल मन के अंदर यही रौशनी होगी ।
फटाको की गूंज एक उम्मीद दे रही
अपनो की दूरी को रह रह के भीगो रही हैं
शायद एक रोज सब साथ होगे
अपनी वो दिवाली सफ़लता के साथ होगी
मिलकर खुशियां हम भी मनाएंगे
हां साहब एक रोज हम भी दिवाली मनाएंगे
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं
प्रीति कुमारी
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