भूलेंगे नहीं भूल कर भी तुम्हें

कुछ इस क़दर बेवफ़ा हो जाते हैं
चाहते हैं जितना टूट कर उतना ही जुदा हो जाते हैं
जिसने कहा था भूलेंगे नहीं भूल कर भी तुम्हें अब
नज़र के सामने से गुजरते हैं पहचान नहीं पाते हैं।


कुछ यादें आज भी हमे रुला जाती हैं
कहती हैं कुछ नहीं पर जुबां चुप करा जाती हैं
जो अपनो के नाम पर गैरों सा शख्स था
उसपे किए भरोसे का हमे आज तक अफ़सोस हैं।

पत्थर सी मूरत को देवता समझता था मेरा दिल
धड़कन की रवानी में मौजूद उसका दिल
कुछ ख़्वाब मुक्कमल होने की अरदास लिए दिल
बेवफ़ा से सच्ची इश्क का खयाल लिए बैठा था
मेरा दिल मुझसे दूर किसी और का हुए बैठा था।

कुछ ख़्याल, ख्याल ही रह जाते हैं
ख्वाबों की दुनियां में कई सवाल ही रह जाते हैं
आखों के खुलते ही ख़्वाब टूट जाते हैं
बेवफ़ा के किए वादे मुक्कमल कहा हो पाते हैं।

आदतें सुधारी जा सकती हैं
लत को कोई कहा छोड़ पाता है 
सच्ची मोहबब्त करने वाले को
सच्ची मोहब्बत मिले
ये बस खूबसूरत ख़्याल है .....
सच में ऐसा मुक्कमल कहा हो पाता है।

प्रीति कुमारी

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