जिन्दगी एक दिन गुमनाम हो जाएगी

रास कवि गुणगान करे
धरा पर आकर मनुष्य अभिमान करे
छल _प्रपंच की लीला कर
खुद का ही सब वो नाश करे।


मोह धरा पर भरी पड़ी 
लचारी जीवन की हैं ये बहुत बड़ी 
क्यों व्यर्थ बांध में बंधते हों
लालच की गठरी गठते हों।

सब नाश यहीं हो जाएगा
जो पाया है सब यहीं रह जाएगा
उड़ते पंछी बहती नदियों का 
सब सोर शांत हो जाएगा
बंद होगी आंखे जिस दिन 
सब धरा पर धरा रह जाएगा।

जो लूट पाट मचाते हो
इंसानियत को शर्मसार करवाते हो
अपनो को अपने से ही ठुकराया है
जो हाय हाय धन का शोर मचाया है।


वो अपने ही साथ निभाएंगे
अंतिम पग में कांधे पे उठाएंगे
ये धन की पेटी यहीं रह जाएंगी
कफ़न भी चिता से छीन ली जाएंगी।

एक याद रहेगा जग को मेरा _तेरा
यश _अपयश का लिखा लेखा
इंसानियत की वो अद्भुत रेखा
धरा पे बस यही रह जाएंगी
जिंदगी एक दिन गुमनाम हो जाएगा।

प्रीति कुमारी


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ