बेटी और बीवी दोनों को पढ़ाओ

एक शख्स तन्हा क्या हुआ हवा उठ गई
सारी महिला फिर एक ही तराजू में तौल दी गई।

एक की बेवफाई सब नारी को बेवफा बना गई
पर अनगिनत नारियों का त्याग
🥺 उसे देवी ना बना सकी 🥺।


हर युग में सुरपनेखा और सीता होती हैं
पर यह कलयुग हैं साहब यहां कहा भेद होती हैं।

सब कह रहे बेटी पढ़ाओ बीवी नही.....
जो त्याग बीवियों ने कर दिया है ना साहब
पतियों को सौ जन्म लेने पर जाएंगे उतना त्याग करने में.....

कभी उसे भी समझिए जो आपके लिए अपनो को छोड़ आती हैं.......
अगर आग एक घर में लग जाए तो उसे बुझाया जाता हैं अपने घर को जलाया नहीं जाता....

विश्वास वो डोर हैं जिसपे दुनियां टिकी हैं घरवाली,बाहरवाली, रखने वाले समाज में भी महिला पुरुषो पर विश्वास रखती हैं.....

इतिहास गवाह हैं औरतों ने हर दर्द सह कर भी रिश्तों को जोड़ा हैं, खुद के टूट जाने तक भी अपनो को नहीं छोड़ा है.....

बाकी यदा कदा तो बाढ़, भूकंप, और आपदा भी आते हैं .......
एक की भावना बूरी हो जाए तो सबको उसी तराजू में नहीं आकी जाती .......

पढ़ना सबका मौलिक अधिकार है
इसे छीनने का अधिकार किसी को नहीं हैं अगर आप रोक रहे तो यकीनन आप
मन के विद्रोह को जन्म दे रहे हैं।

प्रीति कुमारी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ