मुझ में इतना धैर्य नहीं

मुझ में इतना धैर्य नहीं
तेरा इंतज़ार करू कल्पो तक
तू अपना हैं तो आकर मिल
वरना मेरा जीवन तन्हा ही सही।


सब सोच समझ बेगाने है
मेरे दर्द से सभी अनजाने हैं
कई दर्द हैं दिल में प्रगाढ़ बहुत 
जो जुबा पे हैं वो बस आधे हैं।

ये सबल मनोबल टूट रहा
मेरा मन मुझसे ही रूठ रहा
वो क्या जानें जो मुझे अब तक ना जानें हैं 
मुझे व्यर्थ पेरू पग में बांधे हैं।

मैं आधा कल्पित तरु सी हूं
जो ना यहां रहा ना वहा रहा
तुम क्या मुझसे मुंह फेरे हो
जग में मुझको क्यों घेरे हो।

मै खुद ही खुद से रूठी हूं
मैं अंदर से बिल्कुल टूटी हूं
मुझमें अब इतना धैर्य नहीं
तेरा इंतज़ार करू कई कल्पो तक।

प्रीति कुमारी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ