सबके प्रेम में

हमने भी अपने आंचल में आंसू खूब भिगोया है
घूंघट, आँगन, मर्यादा में छुप छुप करके रोया हैं।


सबके प्रेम में पलने वाली प्रेम विरह में रोती है
काजल, बिंदियां, सिंदूर , टीका में खुद को खोती है।

प्रीति कुमारी 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ