चौपाई :
जामवंत के बचन सुहाए । सुनि हनुमंत हृदय अति भाए ॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई । सहि दुख कंद मूल फल खाई ॥ १ ॥
जाम्बवान् के सुंदर वचन सुनकर हनुमान् जी के हृदय को बहुत ही भाए । (वे बोले - ) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना ॥ १ ॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी । होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी ॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥ २ ॥
जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ । कार्य अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है ।
जय श्री राम 🙏🏽
प्रीति कुमारी
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