"वो आख़िरी लम्हा"

सजी उसकी घर की दरों दीवार थी
उसकी गली में खुशियाें की बहार थी 
आने वाली थी बरात उसके घर 
गमे इश्क़ ने मुझे मजबूर कर दिया
एक आखरी झलक को बेचैन हो उठा ।

शुर्क जोड़े में सजी, वो पलकें झुकाएं खड़ी थी
उस पलको में आँसू छुपाके रखी थी, 
मुझे देखते ही वो पलके झुकाकर रोई
लगी हाथों की मेहँदी दिखाकर रोई ।


मेंहदी मे छुपा किसी और का नाम 
दिल में छपे पुराने लम्हों का पैगाम
वो मेरी हाथों मे अपने हाथ सजा के रोई
पुराने लम्हों में खुद को समा कर रोई।

मेरे दर्दो -गम को समझकर
मुझे समझा -समझा के रोई
मेरे निगाहों मे अपनी निगाहे 
गरा के रोई।

इश्क़ की दहलीज पे बेनाकाब खड़े थे
हम उनकी वो मेरी मुहब्बत मे मजबूर पड़े थे
हालात की सहगरमी कोई ना समझ सका
और हम अपने ही जिंदगी को खोये खड़े थे।

किसी तरह वो मिल जाए मुझे 
ये दिल बेचैन हो कह रहा था 
पर परिवार की इज्जत ने
दोनों को  ही मजबूर किया था ।

आखिरी लम्हों की यादें भरकर नयनों में 
वो मेरी आँखों में मैं उसकी आँखों में 
भरे आसुंओ से एकटक नजरे मिलाकर रोए
वो आख़िरी लम्हा दोनों गले लगा कर रोए।

जुदाई से भरे पल के अंतिम समय में 
अपनी जिंदगी  को सीने से लगा कर रोए,
उस पल ने सोचने पर मजबूर कर दिया
काश! तु मेरी ही होती, क्यों सबने जुदा कर दिया ।

    
                                      -प्रीति कुमारी 

 


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