हवा उठ उठ कर झकझोर रही हैं
बाहर तो आँधी है जो रूक जाएगी
दिल में जो शैलाब हैं गमों का वो कैसे रूकेगी।
बरसात तो अच्छी लगती है
काले बादल के बाद
पर टूटे दिल की तड़प में बरसे
आंसूओ की कयामत उदास करती हैं ।
हर हाल में जीना सिखना है
तुझे भूलना हैं, तूझे कोसना नहीं
ये भी एक दौर हैं इससे डरना कैसा
गुजरता हैं हर वक्त इसे भी गुजरना है ।
कल तक जो सब था तेरा सब था मेरा
अब वो वादो से मुकर गया है
खोना पाना ,फिर खोना ,फिर पाना
ऐसे सारे जंजालो से वो निकल चुका है ।
उसका अश्क तो मुझमे बाकी है अभी भी
वो इतनो को खुश कर रहा था कि
मेरे अश्क को गुमनाम कर चुका है
ना भूला हैं वो हमे, ना याद है उसे हम
बस वो उस जंजाल से निकल चुका है
जिसका सारा राज सबके नजरों में खुल चुका है ।
प्रीति कुमारी
1 टिप्पणियाँ
super
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