कुछ तो खोया है उसने भी

बड़ी बेगैरत हैं यादें तेरी
ना चाह कर भी आती हैं
पल में हसाती हैं
पल में रुला जाती हैं।

सुन ना सकू तेरे लब्जो को
इस तरह दिल से मजबूर हूं
तुम्हें चाह ही नहीं हमसे
मेरी चाहत तुमपे मजबूर हैं।


गुरुर है तुम्हें खुद पर या
तुम्हें चाहने वाले भरपूर है
ये तो तू ही जाने...….…...
पर तेरे शब्दों से हों रहा जो बयां
वो मेरे रिश्ते के प्रतिकूल है।

चाहना भी हैं, चाहत भी हैं
तू अपना सा है पर अपना भी नहीं हैं
तू साथ भी है पर एहसास नहीं है
मोहब्बत तो है मुझे तुमसे पर
तुम्हें भी है ये वहम भी नहीं हैं।

अनुभव ही एहसास कराती है
जो अपना नहीं हैं उससे दूर ले जाती हैं
हर पल जिसकी हमे याद सताती है
उस बेवफा को हमारी तनिक याद भी ना आती हैं।

ऐसा ही रहा व्यवहार तो
एक दिन वो भी खोएगा
हम तो मतलबी मोहब्बत खोएगे
वो एक सच्चा रिश्ता खोएगा।

सलामत रखे खुदा गुरुर उसका
उसका सारा किया उसे वापस मिले
दिल से खेलने की जो अदा है उसकी
उसे उस जैसा ही बेहतर हमसफर मिले।

प्रीति कुमारी







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