कलियों को तोड़ने में कतराता है
एक पिता बेटी को बचपन से पोश कर
अपने ही घर से जुदा कर जाता है।
कोई धन, कोई दौलत,
कोई घर दान करता है
एक पिता के दान सा फिर भी कोई
कहा दान करता है।
बेटी दिया, मान दिया
धन दिया सम्मान दिया
दहेज के नाम पर फिर
जीवन भर की कमाई लूटा दिया।
जिसने पाल दिया आधी उम्र तक
वो क्या असमर्थ हैं आगे की राह में
ये तो परंपरा की बेड़ी हैं
जिसमे मजबूर एक पिता ने
अपनी ही कन्या को हैं दान दिया।
बेटी का बाप बनने का
सौभाग्य वहीं वर पाता है
जो मान किसी की बेटी का
जीवन भर बचाता है।
सब दान फिर इसके आगे फीका हैं
गौ दान कर वैतरणी जाओ
सब दान कर भी वो सुख ना पाओ
जो भाग्य से बेटी जन्मी घर में
कन्यादान कर फिर सब सुख पाओ।
प्रीति कुमारी
5 टिप्पणियाँ
कितना अच्छा आप लिखती है आप कहा से है हम आप से मिलना चाहते हैं
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लिखती है आप से हम मिलना चाहते हैं कहा से है आप?
जवाब देंहटाएंThnku so much
जवाब देंहटाएंReally dil ko chhune wala poem hai
जवाब देंहटाएंThnx
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