लबों पर एक झूठी मुस्कान रखते हैं

हमे मोहब्बत रास नहीं आती
कभी खुद की नज़र लग जाती हैं तो
कभी अपनो की आह लग जाती हैं।


बड़े करीब जाकर
बहुत कुछ खोया हैं हमने
तुम्हें अंदाजा भी नहीं हैं
अभी तक उस दर्द मे
खुद को कितना डुबोया है हमने।

हस कर मिलते हैं सबसे
लबों पर एक झूठी मुस्कान रखते हैं
कमी खलती हैं तेरे साथ की
फिर भी खुश सबको अपने साथ रखते हैं।

तुम्हारी बेवफाई की गुनाह
हम हरवक्त काटते हैं
तुम एक आह भी नहीं भरते मेरी याद में
और हम है की हर लम्हा तुम्हारी फरियाद करते हैं।

कुछ इस तरह टूटे हैं खुद से
खोये खोए तेरे ख्यालों में डूबे हैं
दिल चाहता था सुकून तेरी बाहों का
और मिला हैं गम उम्र भर की जुदाई का
क्या करू ऐ जिंदगी
दिल जिद्दी हैं... और हमें मोहब्बत रास नहीं आती।

प्रीति कुमारी



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