वो मेरी कल्पना नहीं, मेरी जज़्बात होती है
पता नहीं आप कैसा फिल करते हैं पढ़ के
पर मेरे आसुओं से शब्दों की बरसात होती हैं।
सुकून से परे जब
दिल बीते बातो की खयालों में जाता है
हर बीता अच्छा बुरा वक्त फिर
शब्दों की जाल बन उभर आता है।
अनायास आसुओं की बरसात होती है
बेवजह कभी कभी होठों पर मुस्कान होती है
फिर वो भी याद आता हैं
जिसे कभी सोचते ना हैं हम
फिर अनायास सारी बाते जहनो में दुहराती हैं।
कुछ ज़ख्म भरते नहीं
कुछ दर्द बेजुबान होते हैं
कुछ यादें जब आती हैं
सारे खुशी गम ताजा कर जाती हैं।
हम जी तो रहे हैं तेरे बिन
पर जीने में वो बात नहीं हैं
वो भी क्या वक्त था
अब वैसी हालात नहीं है।
प्रीति कुमारी
1 टिप्पणियाँ
Super
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