दिन तो कट जाती हैं......

दिन तो कट जाती है राते बहुत तरपाती हैं
तुम तो चले गए, तुम्हारी यादें सताती है।

मुक्कदर में मिलना मुकम्मल ना था
ना साथ तेरा रहा, ना रहा सुकून एक पल का।


साथ चलकर छोड़ना कहा तक सही था
वफा दिखाकर बेवफाई उचित तो नहीं था।

शुरुआत भी तुमने की अंत भी तुमसे ही हुआ
दिल, भरोसा, सपना मेरा टूटा,
और तेरा साथ छूटने का तकलीफ सिर्फ मुझे हुआ।

अपना बनाकर गैर बनाना
सपने दिखाकर तोड़ जाना
ये अजब सी कला है तुममें
कुछ खास तो नहीं पर गुरूर बहुत हैं तुममें।

पसंद मुझे ना थी तेरी अजाईसे
तब तू हर वक्त डोरे डालता था
खोया दिल जब मेरा तो
सारी बंदिसे तुमने मुझ पर लगाया था।

कितना बूरा कर सकता हैं कोई किसी के साथ
ये देखकर नम हैं निगाहें
वादों पे वादे कर कोई कैसे मुकर जाता हैं
उस बेशर्म नजारों को नज़र भर नज़र देखना चाहता है ।

प्रीति कुमारी

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ